प्राचीन काल से ही भारतीय वैज्ञानिकों ने विज्ञान के क्षेत्र में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है। ऐसे ही एक महान वैज्ञानिक, जिन्हें नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया, जिन्हें विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले एशियाई होने का भी गौरव प्राप्त है। जी हाँ, चंद्रशेखर वेंकट रमन जिन्हें सर सी वी रमन (CV Raman) के नाम से भी जाना जाता है, प्रकाश के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए आपको सन् 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 28 फरवरी सन् 1928 को उनकी एक उत्कृष्ट खोज ‘रमन प्रभाव’ को याद कर के इस दिन को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

7 नवम्बर 1888 को तमिलनाडू के त्रिचुरापल्ली में जन्में रमन बचपन से ही प्रखर प्रतिभा के धनी थे। 12 वर्ष की आयु में ही उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली और 15 वर्ष  की आयु में भौतिकी एवं अंग्रेजी में विशेष योग्यता के साथ स्नातक की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। उनके पिता श्री चंद्रशेखर अंकगणित और भौतिकी के अध्यापक थे। 17 वर्ष की आयु में उन्होंने विशेष योग्यता के साथ मास्टर डिग्री हासिल की। 82 वर्ष की आयु में 21 नवम्बर 1970 को बंगलौर में उनका निधन हो गया।

आइये पढ़ते हैं उनके जीवन से जुड़े एक प्रेरणादायी प्रसंग को……

प्रेरक प्रसंग

बचपन से ही रमन (CV Raman) विलक्षण प्रतिभा के धनी तो थे ही साथ में स्वभाव से चंचल भी थे। वे हर काम को बड़े ही जोश और उत्साह के साथ करते थे, लेकिन बहुत जल्दी उनका मन भटकने भी लगता था। वो काम तो पूरी एकाग्रता के साथ शुरू करते, लेकिन कुछ देर बाद उनका मन यहां-वहां भटकने लगता। रमन की इस आदत से उनके पिताजी बड़े परेशान रहते थे और उन्हें सुधारने की कई कोशिशें करते रहते थे। उनके पिता अंकगणित और भौतिकी के अध्यापक थे, वो जानते थे कि अगर समय रहते कुछ नहीं किया गया तो, रमन आगे अपने जीवन में कुछ नहीं कर पायेगा।

एक दिन उनके दिमाग में एक नई तरकीब आई, उन्होंने रमन को आवाज दी, “रमन जल्दी से मेरे पास आओ मैं तुमे एक बेहतरीन जादू दिखाता हूँ, जिसे तुमने कभी नहीं देखा होगा”।

रमन (CV Raman) बड़ी उत्सुकता के साथ भागते हुए पिताजी के पास आ गए। उनके पिता जी आँगन में अख़बार लिए बैठे थे और इनके हाथ में एक पॉवर वाला लेंस था। उन्होंने रमन को अपने पास बैठाया और बोला, “देखो जादू”!

पिताजी लेंस को अख़बार पर यहां-वहां घुमाने लगे। कुछ देर तक देखने के बाद रमन बोर होने लगे और बोले, “पिता जी आपने हमें ये दिखाने के लिए बुलाया था, आपने मेरा समय ख़राब कर दिया!” पिताजी ने मुस्कुराते हुए कहा, “रुको, अब देखो जादू”!

पिताजी ने लेंस को अख़बार पर एक जगह रोका और सूरज की किरणों को एकत्रित कर अख़बार के एक ही स्थान पर फोकस करने लगे। कुछ देर के बाद अख़बार में जहाँ सूरज की किरणें एकत्रित थी, वहां से धुआं निकने लगा और उस जगह आग लग गई।

ये नज़ारा देख रमन की आंखे फटी की फटी रह गई। पिता जी ने रमन (CV Raman) को समझाया कि “देखो जब मैं इस लेंस को यहां-वहां भटका रहा था तो कुछ भी नहीं हो रहा था, लेकिन जैसे ही मैंने लेंस की स्थिति को एक ही स्थान पर स्थिर कर दिया, तब अख़बार में आग लगने लगी।”

उन्होंने बताया “इसी प्रकार अगर हम किसी भी काम को एकाग्रता के साथ करते हैं तो उसमें हम जरूर सफल होते हैं। जब हम अपना ध्यान अपने लक्ष्य की ओर केन्द्रित करते हैं, तभी हम उसे प्राप्त कर सकते हैं। यदि हमारा मन इधर-उधर भटकता रहेगा तो हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। इस छोटी सी सीख ने रमन को ऐसा बदला कि उन्होंने अपना, अपने माता-पिता और अपने देश भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया।

शिक्षा तथा सार

इस प्रेरणादायी प्रसंग के पीछे जो प्रत्यक्ष सीख़ छुपी है वह यही है कि किसी भी कार्य की सफलता इस बात पर निर्भर करती है, कि वो कार्य कितनी एकाग्रता और कुशलता से किया गया है। जब भी हम एकाग्रता के साथ किसी काम को करते हैं तो हमें सफलता जरूर मिलती है। बिना एकाग्रता के हमारा मन इधर-उधर भटकता रहता है और हम किसी भी कार्य को सही ढंग से नहीं कर पाते।