563 ईसा पूर्व कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी, नेपाल के राजा शुद्धोधन की पत्नी और रानी महामाया ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ का अर्थ होता है “सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला”। यही सिद्धार्थ बड़े होकर सन्यासी बनें और सम्पूर्ण विश्व ने इन्हें गौतम बुद्ध के नाम से जाना।

बात उस समय की है, जब गौतम बुद्ध अपने कुछ अनुयायीयों के साथ भारत के कोने-कोने में घूम-घूम कर बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार कर रहे थे। संध्या होने को आयी थी। गौतम बुद्ध ने अपने अनुयायीयों को कहा कि आज हम यहीं पास की पहाड़ी में विश्राम करेंगे और सुबह आगे के लिए प्रस्थान करेंगे। इसके बाद वे सब एक पहाड़ी पर रुक गए। रात होने वाली थी और तभी गौतम बुद्ध को प्यास लगने लगी। जब धीरे-धीरे गौतम बुद्ध की प्यास बढ़ने लगी, तब उन्होंने अपने एक शिष्य को पास के गाँव से जल लाने के लिए कहा।

अपने गुरु की बात सुनकर शिष्य जल लेने के लिए गांव की ओर चल पड़ा। कुछ समय के पश्चात जब वह गाँव पहुंचा तो, उसे वहां एक छोटी सी नदी दिखाई दी, लेकिन जब वह नदी के समीप आया तब उसने देखा कि उस नदी में गाँव के लोग अपने मैले वस्त्रों और पशुओं को साफ़ कर रहे हैं। जिसकी वजह से नदी का जल दूषित हो रहा है। शिष्य को लगा कि यह जल तो बिलकुल भी पीने योग्य नहीं है, वो कैसे इसे अपने गुरु के लिए ले जा सकता है। इसलिए शिष्य बिना जल के ही वापस आ गया और अपने गुरू को सारी घटना के बारे में विस्तार से बताया।


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गौतम बुद्ध के प्रेरणादायी विचार

गौतम बुद्ध ने बिना कुछ बोले अपने दूसरे शिष्य को जल लाने के लिए वापस से गाँव भेजा। कुछ समय पश्चात् उनका दूसरा शिष्य एक मटके में साफ़ जल लेकर आ गया। गौतम बुद्ध ने अपने शिष्य से पूछा कि जब नदी का जल दूषित था, तो वो साफ जल कहाँ से लाया? तब शिष्य ने उत्तर देते हुए बताया कि “जब वो नदी के पास गया तो गाँव के लोग नदी में अपने पशुओं को साफ़ कर रहे थे। लेकिन कुछ समय पश्चात गाँव के लोग वहां से चले गए। तब मैने कुछ देर वहां ठहर कर पानी में मिली हुई मिट्टी और मैल का नदी के तल में बैठने का इंतजार किया। जब मिट्टी और गंदगी नीचे बैठ गई तो पानी साफ हो गया। फिर मैंने उसे मटके में भर लिया।

गौतम बुद्ध अपने शिष्य का यह उत्तर सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। और अपने शिष्य द्वारा लाये हुए जल को ग्रहण किया। इसके बाद उन्होंने अपने शिष्यों को इस प्रसंग में छुपे ज्ञान को समझाया उन्होंने कहा – “हमारा जीवन भी नदी के ही समान होता है। जब हम अपने जीवन में अच्छे कर्म करते रहते हैं, तो ये शुद्ध बना रहता है, परंतु जीवन कभी भी एक समान नहीं चलता। अनेको बार कुछ ऐसे भी क्षण आते हैं जब हमारा जीवन दुख और समस्याओं से घिर जाता है, ऐसी अवस्था में जीवन भी उस नदी के पानी की तरह गंदा लगने लगता है। इस अवस्था में हमें सदैव धैर्य रखना चाहिए।

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शिक्षा तथा सार

इस प्रेरणादायक कहानी के पीछे एक प्रत्यक्ष सीख छिपी हुई है। और वह यह है कि हमें अपने जीवन में कभी न कभी बुरे वक्त का सामना करना ही पड़ता है। ऐसे समय में हमें अपने धैर्य को कभी भी नहीं खोना चाहिए। जिस प्रकार गौतम बुद्ध के उस शिष्य ने पानी की गन्दी मिट्टी के तल में बैठने का इन्तजार किया था, ठीक वैसे ही हमें भी धैर्य रखना चाहिए। जैसे धीरे-धीरे मिटटी स्वतः ही तल में बैठ जाती है और पानी साफ़ हो जाता है। ठीक वैसे ही बुरा समय भी धीरे-धीरे स्वतः ही व्यतीत हो जाता है।