कोलकाता, जिसने ना जाने कितनी ही महान हस्तियों को जन्म दिया है। जहाँ की मिट्टी के कण-कण में कला और संस्कृति का वास है। इसी महान एवं ऐतिहासिक शहर ने देश को स्वामी विवेकानंद जैसा एक महापुरुष भी दिया है। 12 जनवरी 1863 को कोलकाता के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे नरेंद्रनाथ दत्त जिन्हें बाद में स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) के नाम से जाना गया, बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। कौन जानता था? कि नन्हा नरेंद्र बड़ा होकर स्वामी विवेकानंद बनेगा और सम्पूर्ण विश्व को धर्म के मार्ग पर चलने की सीख देगा। स्वामी रामकृष्ण परमहंस को गुरु मानकर अपना सर्वस्व समर्पित कर चुके विवेकानंद का जीवन प्रेरणाओं से भरा हुआ है।

प्रेरक प्रसंग

बात उस समय की है, जब स्वामी विवेकानंद जी अपनी विदेश यात्रा पर अमेरिका गए हुए थे। जहाँ उन्हें व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था। व्याख्यान की समाप्ति के पश्चात् जब वे संध्या के समय टहलने के लिए निकले तो वहीं रास्ते में उन्हें कुछ बच्चे दिखाई दिए, जो निशाना साधने का खेल खेल रहे थे। स्वामी विवेकानंद जी खुद को रोक नहीं पाए और वे भी बच्चों की ओर उनका खेल देखने के लिए चल दिये। वहां पहुंचते ही वे उन बच्चों का खेल बड़ी गंभीरता से देखने लगे।

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उन्होंने देखा कि बच्चे जलाशय में तैर रहे अंडे के छिलकों पर वहां पड़े छोटे-छोटे पत्थरों से निशाना लगाने की कोशिश कर रहे थे। स्वामी जी ने गौर किया कि किसी भी बच्चे से एक भी निशाना सही नहीं लग पा रहा है। कुछ बच्चों का निशाना तो छिलके से बहुत दूर लग रहा था। तभी उन्होंने देखा की एक बच्चा मायूस हो कर वही बैठ गया तब स्वामी जी उस बच्चे के साथ में जाकर बैठ गए और बच्चे से उसका नाम पूछा। ‘स्टीफन’! बच्चे ने मायूसी से मुँह लटका कर कहा। स्वामी जी ने पूछा बेटा क्या हुआ मायूस क्यों बैठे हो। स्टीफन ने कहा कि मैंने बहुत कोशिश की पर मुझसे निशाना लग ही नहीं पाया, लगता है निशाना लगाना मेरे लिए असंभव है। स्वामी जी ने हस्ते हुए बच्चे की पीठ पर हाथ रखा और बोले कि आओ, मैं तुम्हे निशाना लगा के दिखाता हूँ। स्टीफन ने उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए मुस्कुराकर हल्की सी हामी भरी।

स्वामी विवेकानंद जी (Swami Vivekananda) ने अपना पहला निशाना साधा और उनका निशाना बिलकुल सटीक लगा। यह देखते ही स्टीफन को बड़ी हैरानी एवं उत्सुकता हुई, कि यह व्यक्ति इतना सटीक निशाना कैसे लगा पा रहा है। फिर क्या था स्वामी विवेकानंद जी ने एक के बाद एक कर के 12 निशाने लगाए और सभी निशाने बिलकुल सटीक अण्डों के छिलकों पर जा के लगे। इतना सटीक निशाना देख हैरान और उत्सुक स्टीफन से रहा नहीं गया और उसने समय बर्बाद ना करते हुए तुरंत ही वहां उपस्थित अपने बाकी साथियों को भी बुलाया और स्वामी जी से इतने सटीक निशाने का भेद पूछा, “महाशय, भला आप ये कैसे कर लेते हैं? आपने सारे निशाने बिलकुल सटीक कैसे लगा लिए?”

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स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए स्टेफन और उसके साथियों के सवालों का जवाब दिया, कि ‘जीवन मे असंभव कुछ नहीं है, तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा मस्तिष्क उसी एक कार्य पर केंद्रित करो सफलता अवश्य मिलेगी। अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तुम्हारा सम्पूर्ण ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए यानि की उन अण्डों के छिलकों पर जिन्हें तुम निशाना बना रहे हो। लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करोगे तो निशाना कभी चूकेगा नहीं। यदि तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो तभी तुम पाठ की गहराई तक पहुँच सकोगे और वह पाठ तुम्हे जीवन भर याद रहेगा।” सारे बच्चे उनकी बातों को बड़े ही ध्यान से सुन रहे थे।

स्वामी जी ने जब बच्चों से पूछा कि तुम्हे मेरी बातों से क्या सीख मिली, तब स्टीफन ने स्वामी जी को जवाब दिया की – “सफलता से ज्यादा लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।” काफी देर हो चली थी और बच्चों के साथ मिले इस अनुभव को सोचते और मुस्कुराते स्वामी जी अपने स्थान की ओर चल दिए और वे बच्चे भी अपने घर की और लौट गए।

शिक्षा तथा सार 

जीवन एक युद्ध स्थल जैसा है जहाँ रोज़ मर्रा की भाग दौड़ में लाखों करोड़ों लोग कुछ पाने के प्रयास में लगे हुए हैं। कोई उद्योगपति बनना चाहता है, कोई अपने लिए एक अच्छे घर का स्वप्न बुन रहा है। ना जाने अनगिनत लोगों के कितने ही अनगिनत लक्ष्य होंगे? पर लक्ष्य चाहे कितना ही कठिन क्यों ना हो उसे पाने का एक ही रास्ता है कि आप यह चिंता छोड़ दें कि “क्या होगा और कैसे होगा” क्यूंकि यह किसी के भी बस में नहीं हैं।

जिस तरह महाभारत में अर्जुन ने अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य यानी मछली की आंख पर साधा और सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य को प्राप्त किया ठीक वैसे ही हमें भी अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रित करते हुए अपने कर्म को करते जाना चाहिए। तब निश्चित ही आप सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।