एक महान व्यक्तित्व जिसकी एक हुंकार सुनकर हजारों लोग मातृभूमि पर अपना सर्वत्र न्योछावर करने के लिए सज्ज हो जाया करते थे। जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन मातृभूमि की सेवा में लगा दिया। एक ऐसा महानायक जिसने अपने कृत्यों से देश के दुश्मनों की नाक में दम कर रखा था। जिनकी सच्ची देशभक्ति और जज्बे को देखकर स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार उन्हें देशभक्तों का देशभक्त कहा था। जी हाँ हम बात कर रहे हैं उस महान युगपुरुष की जिसे हम सब ‘नेताजी’ के नाम से जानते हैं। नेताजी के प्रेरणादायी जीवन से कई प्रेरक प्रसंग जुड़े हैं जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते है, तो आईये जानते हैं एक ऐसे ही प्रसंग (interview) के बारे में जिसने अंग्रेज़ों की आंखें खोल दी थी।

प्रेरक प्रसंग

नेताजी सुभाषचंद्र बोस, (Subhash Chandra Bose) जिनका जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकी नाथ बोस था जो की एक प्रसिद्ध वकील थे और मां का नाम प्रभावती था। बचपन से ही सुभाष बहुत ही होनहार व समझदार थे, 1919 में उन्होंने बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की और साथ ही यूनिवर्सिटी में भी दूसरा स्थान प्राप्त किया। बात उस समय की है जब सुभाष सिविल सर्विस परीक्षा का इन्टरव्यू देने गए थे।

दरअसल, अंग्रेज बिलकुल भी नहीं चाहते थे कि कोई भारतीय इस परीक्षा को पास करे, इसलिए वो लोग भारतीयों से अजीबो-गरीब सवाल करते और बाद में उन्हें अयोग्य घोषित कर देते। अंग्रेजों का मानना था कि भारतीयों के पास ज्यादा दिमाग नहीं होता, वो बेवकूफ होते हैं। इंटरव्यू (interview) चल रहे थे, अंग्रेज पूरा प्रयास कर रहे थे की कोई भी भारतीय परीक्षा में सफल हो कर आगे न बढ़ जाये। फिर बारी आती है सुभाषचंद्र बोस की, जिनके रक्त का एक-एक कतरा देशप्रेम से भरा हुआ था। सुभाष जैसे ही साक्षात्कार (interview) कक्ष में दाखिल हुए उनके सामने कई फिरंगी अधिकारी बैठे हुए थे, जाहिर है वे सभी वहां इंटरव्यू लेने के लिए बैठे हुए थे।

जैसे ही सुभाषचंद्र बोस इंटरव्यू (interview) देने के लिए बैठे, वैसे ही एक अधिकारी ने उनके समक्ष एक अटपटा सा प्रश्न रख दिया। प्रश्न था कि- बताओ जो तुम्हारे उपर फैन चल रहा है उसमें कितने पंखे हैं? प्रश्न पूंछते ही फिरंगी अधिकारी मुस्कुराने लगे, सुभाषचंद्र बोस ने अपने ऊपर लगे फैन को देखा और फिर चुपचाप बैठ गए। उनमे से एक फिरंगी ने सुभाष से कहा, “अगर तुम इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाए तो तुम्हें बाहर कर दिया जायेगा”। सुभाषचन्द्र बोस ने पहले तो एक हल्की सी मुस्कान भरी और फिर बोले, “अगर मैंने इस प्रश्न का उत्तर दे दिया तो आप मुझसे दूसरा प्रश्न पूछ नहीं पाएंगे और आपको स्वयं ज्ञान पर शर्म आएगी” सुभाष की बातें सुनकर सामने बैठे फिरंगियों का मुहं क्रोध से लाल हो गया, उन्होंने सुभाष से उत्तर माँगा।

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होनहार सुभाष अपनी सीट से उठे और पंखे को बंद कर दिया और उनको पंखुड़ी की संख्या बता दी और अपनी सीट पर वापस बैठ गये। फिरंगियों को बिलकुल भी उम्मीद ना थी कि सुभाषचंद्र बोस ऐसा कोई जवाब देंगे, उन्होंने फिर दुबारा कोई भी प्रश्न सुभाषचंद्र बोस से नहीं पूंछा। सुभाष की तार्किक बुद्धि, सूझबूझ और साहस को देखकर फिरंगी अधिकारियों के सिर शर्म से झुक गए। उन फिरंगियों की आँखों में यह साफ़ नज़र आ रहा था कि उन्होंने स्वीकार कर लिया था कि भारतीय साहस, बुद्धिमानी और आत्मविश्वास से हर समस्या का हल खोज ही लेते हैं।

शिक्षा तथा सार

इस प्रसंग से हमें शिक्षा मिलती है कि जीवन की किसी भी परीक्षा में सफल होने के लिए आवश्यक है धैर्य । यदि आप धैर्य पूर्वक किसी भी समस्या का हल खोजने निकल पड़े तो सफलता ही मिलेगी। यदि आप धैर्यवान हैं तो आपके सामने चाहे परीक्षक हो या दुश्मन आप बिना डरे और घबराये उसके हर प्रश्न या प्रहार का सही उत्तर दे पाएंगे।