स्वामी विवेकानंद और बन्दर
“जब तक आप स्वयं पर विश्वास नहीं करते,
आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।”
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद जिन्होंने भारतीय आध्यात्म और जीवन के नैतिक मूल्यों से सम्पूर्ण विश्व को अवगत कराया। जिनके सिद्धांतों पर चलकर अनेक लोगों ने अपने जीवन को एक नई दिशा दी है। जब भी कभी स्वामी जी का नाम मन में आता है तब हृदय श्रद्धा और गर्व से भर जाता है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य रहे स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरू की विचारधारा को अपनाया और उसका प्रचार-प्रसार किया। विवेकानंद समाजसेवा में विश्वास रखते थे। वह गरीबों की मदद करते व उनके दुखों का निवारण करने के लिए सदैव प्रयासरत रहते थे।
विवेकानंद के जीवन से जुड़ा एक प्रेरक प्रसंग
बचपन से ही स्वामी जी का ईश्वरीय प्रेम उनकी आँखों में झलकता था। उनका ज्यादातर समय ईश्वर की भक्ति और मंदिरों में ही व्यतीत होता था। वे अक्सर अपने घर के पास वाले मंदिर में जाया करते थे। एक बार की बात है जब स्वामी जी मंदिर से अपने घर के लिए निकल रहे थे तभी अचानक वहां मौजूद बंदरों ने उन्हें घेर लिया। दरअसल बात यह थी कि स्वामी जी के हाथ में मंदिर का प्रसाद था, और बन्दर प्रसाद को उनसे छीनना चाहते थे। तभी कुछ बन्दर तेजी से उनके समीप आ गए और स्वामी जी को डराने का प्रयास करने लगे। बालक नरेंद्र अचानक से इतने बन्दर देखकर भयभीत होने लगे और खुद को बचाने के लिए वहां से दौड़ कर भागने लगे। उनको भागते देख बन्दर भी उनके पीछे-पीछे दौड़ने लगे।
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वहीं मन्दिर के पास एक वृद्ध साधू बैठा हुआ था जो ये सब दृश्य देख रहा था। जब देखते-देखते स्थिति कुछ गंभीर होने लगी तब उस वृद्ध साधू ने बालक नरेंद्र से कहा, “रुको! डरो मत, उनका सामना करो और फिर देखो कि क्या होता है।” उस वृद्ध साधू की बात सुनकर बालक नरेंद्र रुक गए। जैसे ही स्वामी जी रुके, बन्दर भी अपनी जगह पर रुक गए। अब स्वामी जी भागने की बजाए पलट कर बंदरों की तरफ तेज़ी से बढ़ने लगे। और जैसे ही उन्होंने आगे बढ़ना शुरू किया, उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। बन्दर उनके पास आने की बजाए वहां से भागने लगे और कुछ ही देर में वहां से सारे बंदर भाग खड़े हुए। तब जाकर उन्होंने सुकून की सांस ली और उस वृद्ध सन्यासी का धन्यवाद किया और अपने घर की ओर प्रस्थान कर गए। इस घटना से बालक नरेंद्र को बहुत बड़ी सीख मिली, कि कभी भी समस्या से भागना नहीं चाहिए, बल्कि उसका डटकर सामना करना चाहिए।
शिक्षा तथा सार
इस प्रेरणादायी प्रसंग के पीछे जो प्रत्यक्ष सीख़ छुपी है वह यही है कि – यदि हम कभी किसी चीज से भयभीत हों, तो उससे भागना नहीं चाहिए बल्कि डट कर उसका सामना करना चाहिए। हमें अपने आपको कभी भी कमजोर नहीं समझना चाहिए। हर परिस्थिति में अपने डर का सामना करना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।